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Poems

उनकी कहानी और
हमारी 'पवित्र' दिवाली

नव नक्षत्र, वायु, जल और मिट्टी
आकाश से मिलती सूर्य देव की ऊर्जा.
प्यार से सजता संवरता
पंचमहाभूतों का यह संपूर्ण संसार.

धरती में समाए मेहनतकश हाथ
किसने दिया उन्हें अब तक साथ?
विवश-बेचारा, लिए आंखों में आंसू
पल पल कर्ज चुकाता…!
पानी संग आकार लेता दीया
दीये को पवित्र बानती सूर्य देव की जिया!

धरती का फटा सीना,
किसान-मजदूर को है जीना
तन पर उभरी पसीने की हजारों बूंदें
जैसे इत्र दिखाकर उसके बदन को रौंदे.

दीयों में जलती पसीने की बाती
चारों ओर कानों में गूंजती
नेताओं की ठहाकेदार  पाती.
नंगा बदन!
किस काम का राजा
किस काम की रानी रानी?

वो सर्दी पे सोता, गर्मी को ओढ़ता
और बारिश को नहाता
फिर भी वो बेचारा
एक दीया नही जला पाता…!
जरा सोचिए
उसका बेटा कब जश्न मना पाता?

न पूजा न अर्चना
न लक्ष्मी न महालक्ष्मी
वो भी नही कर पाता
दूर से देखता
वो मिठाई खाता…
घर में आकर बच्चा रूठ जाता.
न बही, न खाता
फिर भी वो कर्ज चुकाता.
फिर क्यों नेताओं के गीत गुनगुनाता जाता?

कतार में खड़े झुलसते हुए पौधे
उस पर इतराता कपास का मुकुट-मणि
और उसके होते नापाक सौदे…!

हवाओं के थपेड़ों से बचते बचाते
निकली उसके दीयों की बारात
टिमटिमाते तारों की सौगात…!
लौ का जगमगाता प्रकाश
मिटाता सबका विनाश…!

यही है उसकी दर्दभरी कहानी
पटाखों के साथ सबने मनाई  दिवाली.
सरहद के जवानों को भी याद किया
फिर दिल खोलकर पीया.
किसी ने कहा- वो देख रहा मियां.
वो टक-टक देख रहा था
आंखें सेक रहा था.
आंसू की लगी थी झड़ी
इतिहास बोल रहा था.
दीया तू भी जला
मैं ही क्यों? तू भी दिवाली मना!

तुम निकले हो कहां

अंधेरे में उजियारा ढूंढने तुम निकले हो कहां?
सदियों से बिछड़ों को ढूंढने तुम निकले हो कहां?

हालातों से समझौता करके आंखें भी सूख गर्इं
बेबस आंखों में आंसू ढूंढने तुम निकले हो कहां?
सदियों से बिछड़ों को ढूंढने तुम निकले हो कहां?

मिल चुके हैं कई दफा हम जाने कितने जगह
ठिकाना देख मुलाकात का ढूंढने तुम निकले हो कहां?
सदियों से बिछड़ों को ढूंढने तुम निकले हो कहां?

लाया मोगरे का गजरा मैंने एक तुम्हारे लिए
फिर दुनिया में चमन ढूंढने तुम निकले हो कहां?
सदियों से बिछड़ों को ढूंढने तुम निकले हो कहां?

बैठकर जिस अमलतास के पेड़ के तले
करते थे हम शिकवे गिले
उस पेड़ के साथ के पलों को ढूंढने तुम निकले हो कहां?
सदियों से बिछड़ों को ढूंढने तुम निकले हो कहां?

कुछ बेजार हो गए कई निसार हो गए
दिल के सूने बाजार में इश्क ढूंढने तुम निकले हो कहां?
सदियों से बिछड़ों को ढूंढने तुम निकले हो कहां?

हुआ करते थे हम कभी एक मैदान के छोर में
उन गुजरे फसलों को ढूंढने तुम निकले हो कहां?
सदियों से बिछड़ों को ढूंढने तुम निकले हो कहां?

समझा मैंने जिसे मंजिल वही निकला तंग दिल
बेवफाई के जहां में वफा ढूंढने तुम निकले हो कहां?
सदियों से बिछड़ों को ढूंढने तुम निकले हो कहां?
माना जिसे हमने अपना दे गया वही हमको दगा

गैरों में अपनो को ढूंढने तुम निकले हो कहां?
सदियों से बिछड़ों को ढूंढने तुम निकले हो कहां?

तुम चले आओ ना...

प्यारी सी बारिश में हवा भी इतरा रही है
होकर वो मस्तानी यही गुनगना रही है
तुम चले आओ ना, मत कहो ना…ना…ना…!

तुम नहीं तो यहां सूना है सारा जहां
देख तेरी याद में ख्वाहीशें हो रहीं जवां
कर रहा है महबूब बस तेरा ही इंतजार
संग तेरे भींगने को, मैं हो रहा बेकरार.

ना जाने कब आएगा खूबसूरत वो पल
आकर मेरी बाहों में तुम जाओगी मचल
काफिला ये बूंदों का कहीं रुक न जाए
ऐसे में अगर जो एक तू न आए

अपने दीवाने को यूं तड़पाओ ना
तुम चले आओ ना, मत कहो ना…ना…ना…!

शुक्रिया जनाब जो तुम चले आए
भीनी भीनी सी संग अपने खुशबू ले आए.
लहराया फिर तुम ने अपना ये आंचल
शोर करने लगे ये दीवाने काले बादल.

इश्क की महफिल हम आओ कुछ यूं सजाएं
मौसम भी ये आज का आशिकाना हो जाए.
मदहोशी में तुम बाहों को खोल रही हो
प्यासी नजरों से तुम कुछ बोल रही हो.
हो न जाए हमसे हसीन खता हमें संभालो ना
तुम चले आओ ना, मत कहो ना…ना…ना…!

उन्हें भी तो खबर होनी
चाहिए...!

मेरे चाहने से भला क्या होता है
उन्हें भी तो महसूस होना चाहिए
एक मेरे रोने से क्या होता है
उन्हें भी तो खबर होनी चाहिए…!

मेरे हालात से वो अंजान सही
गुरूर वक्त की नजाकत ही सही
इंसान को इंसान की कदर होनी चाहिए
वक्त पे हर किसी की नजर होनी चाहिए
एक मेरे रोने से क्या होता है
उन्हें भी तो खबर होनी चाहिए…!

उनके दिल में इश्क की शमां जल जाए
अश्क मेरे लिए उनकी भी निकल आए
अपने बीमार पर एक नजर होनी चाहिए
बस उनके दिल पर मेरा बसर होना चाहिए.
एक मेरे रोने से क्या होता है
उन्हें भी तो खबर होनी चाहिए…!

इजहार-ए-उल्फत एक दिन करेंगे वो
तन्हाई में आहें भी भरेंगे वो
मेरी दीवानगी का उन पर असर होना चाहिए
आशिकों को अंजाम से बेफिकर होना चाहिए
एक मेरे रोने से क्या होता है
उन्हें भी तो खबर होनी चाहिए…!

मेरे चाहने से भला क्या होता है?
उन्हें भी तो खबर होनी चाहिए…!

कभी तो आकर बिखर जाओ ना मुझमें.

ख्वाब तेरे ही सजाऊं
मैं इतना तुमको चाहूं
जहां जाए मेरी नार
सिर्फ तुमको ही पाऊं
कोई तो बात है प्रिये तुझमें
कभी तो आकर बिखर जाओ ना मुझमें.

परियों सा तेरा रूप है
छांव कभी तू धूप है
हो यौवन बहारों का समंदर
सुंदरता से भी तू सुंदर
भोला सा तेरा मुखड़ा है
तू लगती चांद का टुकड़ा है
तू सूरज की कोमल किरण
झील से गहरे ऐ दो नयन
जी मेरा करे उम्र भर के लिए
डूब जाऊं मैं इसमें
कभी तो आकर बिखर जाओ ना मुझमें.

मुङो तेरा इंतजार है
दीवाना ऐ बेकरार है
मैं तो करू बस तेरी ही पूजा
इस दिल में और कोई ना दूजा
तू गुलशन की बावरी कली
तन तेरा है मखमली
तू अजंता की मूरत है
तू बड़ी ही खुबसूरत है
इतनी खुबियां मेरी ओ जां
है और कहां किसमें
कभी तो आकर बिखर जाओ ना मुझमें.

मेरे प्यार को तुम्हीं ने तो जान दी
बेकसूर होठों को मुस्कान दी
जिंदगी की महफिल मैं तनहा था
तुमही ने तो शान दी
हमारे पवित्र प्यार को पहचान दी
ता जिंदगी मैं तुम्हारे ही गीत गुनगुनाऊं
खुदा करम करें ऐसी की मैं तुझमें समां जाऊं
मैंने मोहब्बत की हर खुशी पाई है एक तुझमें
कभी तो आकर बिखर जाओ ना मुझमें.

 

तुम्हारी आंखें ..

तुम्हारी आंखों में वो बात है
जिससे यह दिन और रात है
रखें सदा महफूज़ खुदा इन्हें
ये बहुत सुंदर और पाक है.

समंदर है इनमें तो सेहरा भी है
शाम है इनमें तो सवेरा भी है
बसी इनमें सारी कायनात है
रखें सदा महफूज़ खुदा इन्हें
ये बहुत ही सुंदर और पाक है.

दर्द है इनमें कुछ तो दवा भी है
बदल दे ये मौसम को हवा भी है
बयां करती दिलों के ज•बात है
रखें सदा महफूज़ खुदा इन्हें
ये बहुत ही सुंदर और पाक है.

महफिल है इनमें तो तन्हाई भी है
तुम्हारे गम की इनमें परछाई भी है
उठते इनमें कई-कई सवालात है
रखें सदा महफूज़ खुदा इन्हें
ये बहुत ही सुंदर और पाक है.

जगह नहीं इनमें कहीं नफरत की
देन है ये भी एक तुम्हें कुदरत की
दिलों के बदल देती सारे हालात है
रखें सदा महफूज़ खुदा इन्हें
ये बहुत ही सुंदर और पाक है.

बसा इन आंखों में सच्च प्यार है
रहता इनमें जैसे सारा संसार है
देखती नहीं ये कोई जात-पात है
रखें सदा महफूज़ खुदा इन्हें
ये बहुत ही सुंदर और पाक है.

तुम्हारी आंखें बड़ी कद्रदान हैं
जो करती सभी का सम्मान हैं
बड़े अच्छे इनके ख्यालात हैं
रखें सदा महफूज़ खुदा इन्हें
ये बहुत ही सुंदर और पाक है.

देखना है दुनिया नजरों से तुम्हारी
कैद कर लो इनमें ख्वाहिशें हमारी
मिलना ये हमारा इत्तफाक है
रखें सदा महफूज़ खुदा इन्हें
ये बहुत ही सुंदर और पाक है.

जरूरतमंदो पर होती ये निसार है
ये भी अहम इनका किरदार है
मुश्किलों में हर किसी के साथ है
रखें सदा महफूज़ खुदा इन्हें
ये बहुत ही सुंदर और पाक है.

झील-सी आंखों वाली मल्लिका
तुमसे सीखा जीने का सलीका
दिल थामना चाहता ये हाथ है
रखें सदा महफूज़ खुदा इन्हें
ये बहुत ही सुंदर और पाक है.

हिमालय से निकली गंगा की तरह
अग्नि, रोशनी और नक्षत्र की तरह
बनी जगत में इनकी साख है
रखें सदा महफूज़ खुदा इन्हें
ये बहुत ही सुंदर और पाक है.

तुम्हारी आंखों में वो बात है
जिससे यह दिन और रात है
रखें सदा महफूज़ खुदा इन्हें
ये बहुत सुंदर और पाक है.

दारे ठोठावणारे आवाज

एक विचित्र आवाज
हल्ली सतत माझ्या
कानांवर आदळतो.
हा आवाज ना नेहमीचा,
ना ओळखीचा – ना पाळखीचा.
असह्य वेगाने दणाणत
धावत सुटतो तो आवाज..
कधीतरी कळलं हल्लीच की
हा सायरनचा आवाज आहे!
पण तो नेहमीसारखा नाही,
उरावर मृत्यू धावून यावा
तशा उठतात त्याच्या किंकाळ्या!!

रात्रंदिवस तेच.
तोच आवाज
आदळत राहातो माझ्या कानांवर!
सायरनच्या तडफडाटातून उठतात
आणखी काही चित्र-विचित्रसे आवाज..
विचिलत करणारे आवाज..
कुठेतरी टाहो फुटतो,
मधूनच किंकाळ्या सरसरत जातात,
धडाधड दारं ठोठावत माझ्या
आयुष्यात घुसतात हे आवाज!
मला माहीत नाहीत ते
त्यांची-माझी ओळखही नाही!
…मग मी असा अस्वस्थ का ?

ही अॅम्बुलन्स कुठेतरी पोहचल्यावर
थांबून का राहत नाही ?
शहरातल्या रस्त्यांवरु न अशी
वेड्यासारखी भटकत का असते ती?
कधी वाटतं,
काहीतरी शोधत असावी ती!
काय?
कदाचित ती आसरा शोधत असेल,
तिच्या पोटात भरलेल्या असहाय्य जीवांसाठी!
त्यांना कुणीतरी कुशीत घ्यावं, म्हणून
कळवळत असेल ती!
… पण आता कुणाच्याही पोटात
कुणासाठीही जागा नाही!
कुणा जात्या जीवाला मीठी घालणारेही
कुणी नाही!
विनवण्या ऐकणारे कान नाहीत,
स्पर्श करणारे हात नाहीत!
निष्प्राण डोळे, अडखळते शब्द..
थरथरणारे हात .. आणि नजरेपुढे राख!

आवाज वाढतोच आहे!
कल्लोळ सहन होत नाही आता!
कितीतरी अनोळखी किंकाळ्या
माझ्या चौफेर धावत सुटतात हल्ली!!
लाचार बिचारा माझा लोकप्रतिनिधी;
तो फक्त गोठल्यासारखा स्तब्ध दिसतो!
इकडे-तिकडे पाहात नजर चोरत
कसाबसा लाज राखत उभा आहे तो कधीचा!
काय करावे हे त्याचे त्यालाही
कळेनासे झाले आहे!!

कुणापाशी आहेत का ते दोन हात ?
कळवळणाºया किंकाळ्यांना
मिठीत लपेटून घेतील,
असे दोन हात!!
हे हात कुणाकडेच कसे उरले नाहीत?
तुफानाची चाहूल तर लागली होती…
मग का नाही कुणी सावरले छप्पर?
असे कसे विस्कटून गेले हे अख्खे घर?
…आणि आता ही जगण्याची तडफड,
आता हा मृत्यूचा नंगानाच….

असह्य भीतीने थरथरते आहे हवा,
घुसमटले आहेत श्वास…
शुभ्र कपड्यात लपेटलेल्या
काही हलत्या आकृत्या मात्र
पाय रोवून उभ्या आहेत
या मृत्यूच्या थैमानात …
– डॉक्टर आणि त्यांच्यासोबत
अखंड राबणारे त्यांचे सोबती !!
त्यांना कृतज्ञ नमस्कार करावा
एवढेही बळ उरले नाहीये हातात ,
अनेकांच्या जिभेवर त्यांच्यासाठी
उपदेशाचे कडू डोस मात्र जरूर आहेत!
कधी कळवळून वाटते निर्वाणीचे सांगून टाकावे
त्या शुभ्र आकृत्यांना,
जा बाबांनो, जरा श्वास घ्या, आराम करा
दोन तास तरी सुखाने शांत झोपा…
… तुम्ही तरी काय काय कराल?

… पण माझा आवाज
पोचत का नाही त्यांच्यापर्यंत ?
तरीही त्यांचे हलके, दबलेले आवाज
मला ऐकू येतात, ते कसे?

असहाय आणि हतबल आहेत
सारे डॉक्टर्स आणि त्यांचे सहकारी !
त्यांच्याकडील अस्त्रे-शस्त्रे
कधीची गतप्राण झाली आहेत…
त्यांचे नि:शस्त्र हात
बांधून घातले आहेत व्यवस्थेने !
ना श्वासापुरता आॅक्सिजन आहे,
ना घाव भरायला इन्जेक्शन,
ना जीव जगवणारी औषधे!
तिकडे औषधांच्या फॅक्टºया मात्र
लबालब आणि मालामाल!
इकडे कलकलाट आणि भांडणे
चालली आहेत कधीची.
वादावादी आणि हमरीतुमरीवर
आली आहेत माणसे,
आरोपांआधीच प्रत्यारोपांची धुमश्चक्री
सुरू आहे !
… तरीही मी शांत कसा ?
राग निवला, संताप उतरलाय कदाचित,
आता आक्रोशही नाही फुटत !!
उद्याच्या आशेवर जगतो आहे कदाचित मी…
इतिहास शिकवतो ते धडे विसरू नयेत कधी.
निराशेच्या गर्तेत कधी
खितपत पडलाय का इतिहास ?

हे काय पाहातो आहे मी?
रुग्णांचे दु:ख बघून रडत असलेले
परिस्थितीपुढे हतबल झालेले
डॉक्टर?
या आधी त्यांना कधीच असे पाहिलेले नाही मी..
हताश ..आणि हरलेले! पराभूत!
डॉक्टर असले म्हणून काय झाले?
त्यांच्या छातीतले काळीज वेगळे कसे असेल ?
अंधाराच्या पारंब्या पार पायांना वेटोळी घालून
वर चढू लागल्या आहेत!

हिमालयातून वाहणारी गंगा
अपवित्र, लज्जीत दिसते आहे कधीची !
लाखोंच्या अपराधाची ओझी वाहात
कशी पुढे सरकेल आता ती ?
…. तरीही सर्वत्र
जिन्दाबादचे निर्भय, निलाजरे नारे
कानठळ्या बसवत ओरडत सुटले आहेत !
कुठल्यातरी कोपºयातून
बंद कानांवर अजानची बांग येते आहे,
तबकातल्या निरांजनाच्या मंद प्रकाशात
धूपाची शुभ्र वलये ओला सुगंध मिसळताहेत !
… अडवू नका, मिसळू द्या यांना परस्परात
कुणीही थांबवू नका त्यांना !

होळीपेक्षाही तीव्र डंखाने
धडधडत सुटल्या आहेत चिता…
मुसमुसत्या स्मशानातून फिरणारा
हा अनाहूत पाहुणा कोण?
अचानक गजबजलेल्या स्मशानालाही
आवरेनासे झाले आहेत अश्रू,
अवचित अकाळी लोटलेल्या पाहुण्यांसाठी
जागा तरी कशी करावी स्मशानाने?

इथे, तिथे, सर्वत्र
भरून राहिले आहे भय !
कुठे जिवलगांना गमावण्याच्या भयाने
पोखरून गेलेली हतबल माणसे;
कुठे विरहाच्या दंशाने पेटून
जळून खाक झालेली सुन्न माणसे !

चिडीचूप शांतता ओरडत उठते कधीतरी ,
अंगावर येते माङया !
– पण तरीही…

– पण तरीही
या अंधारात चालत राहिले पाहिजे.
तुला. मला.
दिवे लावत गेले पाहिजे.
लावलेला हरेक दिवा तेवत ठेवला पाहिजे.
स्वप्ने सांभाळली पाहिजेत.
मृत्यूच्या वादळातून
जपून पल्याड नेली पाहिजेत!

सारेच हतबल आहेत,
हे खरे.
पण
काही पाय रोवून उभे आहेत, हेही खरेच!
ज्यांच्या हिंमतीला पार नाही,
आण िस्वप्नाना ढळ नाही,
ते उभे राहातील.
यातूनही तरतील.
..प्रत्येकाला हात देतील !

माझ्या काळजातल्या
आशेच्या रोपाला
मी हल्ली रोज पाणी घालतो !

रोशनी…

चारों ओर तुम्हारी याद है
उन यादों को गले लगाने दो
जाने ये कैसी आहट रोज चली आती है
तुम्हारे होने का एहसास दिलाती है

भीगी-भीगी रातों में
महकी-महकी बातों में
तुम्हारे साथ जो वक्त बिताया
वो याद आने दो
सूरज की रोशनी को छनकर आने दो
बंद कमरे में छाए अंधेरे को जाने दो
सूरज की रोशनी को छनकर आने दो
बंद कमरे में छाए अंधेरे को जाने दो

तुम्हारे माथे से टपका हुआ
पसीने का बूंद भी मुझे याद है
छोटी-छोटी प्यारी प्यारी
तुम्हारी वो हरकत भी मुझे याद है
वो तुम्हारा मुस्कुराना और
मुङो देखकर इतराना, वो भी याद है
सूरज की रोशनी को छनकर आने दो
बंद कमरे में छाए अंधेरे को जाने दो
सूरज की रोशनी को छनकर आने दो
बंद कमरे में छाए अंधेरे को जाने दो

हो सके तो मेरी काली रात में
चांदनी बनकर तुम्हारी यादों को उतर जाने दो
मुङो पास बुलाती तुम्हारी वह दो आंखें,
एक से झलकता प्यार,
दूसरे से टपकता आँसू वो भीे मुङो याद है

भीगी-भीगी रातों में
महकी-महकी बातों में
तुम्हारे साथ जो वक्त बिताया
वो याद आने दो
सूरज की रोशनी को छनकर आने दो
बंद कमरे में छाए अंधेरे को जाने दो
सूरज की रोशनी को छनकर आने दो
बंद कमरे में छाए अंधेरे को जाने दो

अब तो चले भी आओ
और परेशान ना करो
मेरी बची हुई सांसें थी जो तुम्हारे लिए
उसे रहने दो
तुम्हारे शीशे पे पड़ेगी गीले बालों के निशान
यादों के मोती बनकर दिल में उतर जाने दो
सूरज की रोशनी को छनकर आने दो
बंद कमरे में छाए अंधेरे को जाने दो
सूरज की रोशनी को छनकर आने दो
बंद कमरे में छाए अंधेरे को जाने दो..

हमने तुमको देखा..

लड़का : हमने तुमको देखा तुम में समा गए
लड़की : तुमने हमको देखा दुनिया में समा गए
दोनों : इस दौर-ए-दीदार में सनम
हम ये किस जहां में आ गए

– अंतरा 1 –
लड़का : बनने लगी खुद-ब-खुद अपनों से दूरियां
बढ़ने लगी जब से तुम से ये नजदीकियां
पहली नजर में ही तुम मुङो अपना बना गए
इस दौर-ए-दीदार में सनम
हम ये किस जहां में आ गए

– अंतरा 2 –
लड़की : जीते हैं हम एक तेरी यादों के सहारे
खोए रहते हैं बस खयालों में तुम्हारे
ख्वाबों में आकर सोए अरमां जगा गए
इस दौर-ए-दीदार में सनम
हम ये किस जहां में आ गए

लड़का : हमने तुमको देखा तुम में समा गए
लड़की : तुमने हमको देखा दुनिया में समा गए
दोनों : इस दौर-ए-दीदार में सनम
हम ये किस जहां में आ गए.

कहा था जो मैंने

दिन तो गुजर जाता है पर रात का क्या?
कहा था जो मैंने तुझसे कभी, उस बात का क्या?

आलम तो ये है रोज एक वादा करते थे वो
लेकिन वादा निभाते नहीं, उस बात का क्या?
दिन तो गुजर जाता है पर रात का क्या?

आग लगाने को तो वो दिल में लगा देते हैं
पर वो आग बुझाते नहीं, उस बात का क्या?
दिन तो गुजर जाता है पर रात का क्या?

सताना और तड़पाना ये फितरत में है उनकी
आंखें रो रो के बंद हो गर्इं, उस बात का क्या
दिन तो गुजर जाता है पर रात का क्या?

तुम्हे क्या, तुम हो एक आकाश बादल से
हम जो ठहरे एक ही जगह, उस बात का क्या?
दिन तो गुजर जाता है पर रात का क्या?

हरकतें तुम्हारी एक दिन मार डालेंगी मुझे
हम जीयें या मरें तुम्हारे लिए उस बात का क्या?
दिन तो गुजर जाता है पर रात का क्या?

एक दिन जो आएगा अगर हम तुमसे ना मिले
मिट जाएंगे हम फुरकत में, उस बात का क्या?
दिन तो गुजर जाता है पर रात का क्या?

तेवर हैं ऐसे जैसे कयामत ही ढाओगी
गुस्सा तो है बड़ा आशिकाना, उस बात का क्या?
दिन तो गुजर जाता है पर रात का क्या?

हसीनों की अदाएं तो बड़ी जालिम होती हैं
करती हैं घायल नजरों से, उस बात का क्या?
दिन तो गुजर जाता है पर रात का क्या?

वो बेचारा तो बस तड़पता ही रह गया
न जाने कब खाक हो गया, उस बात का क्या?
दिन तो गुजर जाता है पर रात का क्या?

मुहब्बत है मुझे उनसे, ये खबर है उन्हें
फिर भी परवाह न करें मेरी, उस बात का क्या?
दिन तो गुजर जाता है पर रात का क्या?

शान हो आजकल तुम हर महफिल की
हम तो रह गए बस तनहा, उस बात का क्या?
दिन तो गुजर जाता है पर रात का क्या?

ये बात किसी से कहो ना...

मुझे तुमसे इतना प्यार है
ये बात किसी से कहो ना
दो धड़कते दिलों का राज है
ये बात किसी से कहो ना.

तुम्हे दिल दिया है
तुम्हे जां भी देंगे
तुम्हे तारे चाहिए
आसमां भी देंगे.

सनम तुम्हारी मांग में सिंदूर भर देंगे
ये सारा जहां तुम्हारे नाम कर देंगे.

इस कदर मुझे तेरा खुमार है
ये बात किसी से कहो ना
मुझे तुमसे इतना प्यार है
ये बात किसी से कहो ना.

शुरु हुई कहानी तो खत्म भी होगी
प्यार की अपनी कोई हर रस्म भी होगी
मुझसे जुदा अपनी जिंदगानी होगी
अपने खुदा की हम पर मेहरबानी होगी.

मेरी हर खुशी तुम पर निसार है
ये बात किसी से कहो ना
मुझे तुमसे इतना प्यार है
किसी से कहो ना…!

तेरी महफिल से उठकर...

तेरी महफिल से उठकर
हम यूं चले गए
न आहट हुई
न घबराहट हुई

फिर कुछ देर बाद
वो संदेशा आया
ॅचलो सजाते हैं फिर से महफिल
और हम बेखबर से चले गए…!

मुझे याद है वो महफिल
जो सजाई थी तुमने.
लाया था तुम्हारे लिए
मैंने मोगरे का एक गजरा
और अपनी अंखों में
तुमने लगाया था कजरा.

शान में तुम्हारी मैंने
दीप भी जलाया था
पसंद था जो तुम्हे कभी
वो गीत गुनगुनाया था.

खुमार तेरा चढा इस कदर
कि हम उसमें ढल गए.
तेरी महफिल से उठकर
हम यूं चले गए…!

बड़ा खूबसूरत था
उस रात का मंजर
देखकर तेरी हर अदा
सीने में चले थे खंजर

हमने तो बस एक
दीया ही बुझाया था
बाहों में लेकर हमें तुमने
रात को जवां बनाया था.

पूनम की रात का चांद
हमें देख मुस्कुराया था
मिलन देख हमारा
वो भी मुस्कुराया था…!

मैं जानता हूं तुम नहीं आओगी
लेकिन अपने होने का एहसास कराओगी.

देख कर मिलन हमारा
सितारे भी जल गए.
तेरी महफिल से उठकर
हम यूं चले गए…!

ये भी एक खबर है

पास तुम्हारे कोई खबर नहीं

ये भी एक खबर है.

तुम दुनिया से हो बेखबर

ये भी एक खबर है.

मन मानता ही नहीं कि

तुम्हे कुछ खबर नहीं

लेकिन सच तो यही है कि

तुम्हे इसकी भी खबर नहीं.

बैठे हो बन के तुम बेखबर

ये भी एक खबर है

तुम दुनिया से हो बेखबर

ये भी एक खबर है.

चर्चा तो ये भी है शहर में

नजर है तुम्हारी हर खबर में

फिर कौन सी है वो खबर

जो नहीं है तुम्हारी नजर में?

करे ना असर तुम पे कोई खबर

ये भी एक खबर है.

तुम दुनिया से हो बेखबर

ये भी एक खबर है

पास तुम्हारे कोई खबर नहीं

ये भी एक खबर है.

तुम दुनिया से हो बेखबर

ये भी एक खबर है.

तुम भी बंद हम भी बंद, चारों तरफ है बंद ही बंद..

तुम भी बंद हम भी बंद
चारों तरफ है बंद ही बंद
सुना है ये भी हमने
कर दिया अब तो कलम भी बंद.

कैसा ये फरमान है जिससे सब हैरान हैं
पढ़कर जिसे लोग सारे हो गए परेशान हैं
खुलेगी ना दुकानें ना खुलेगा बाजार
कैसे करेंगे फिर हम सा अपना व्यापार
दो जून की रोटी का हमारी
सरकार तुमही कर दो प्रबंध
तुम भी बंद हम भी बंद
चारों तरफ है बंद ही बंद.

आफत ऐसी आ गई भूखमरी ही छा गई
ना जाने कितनी जाने काल के मुंह में समां गई
अब तो सारे सुख-साधन छीन गए
कहां वो अच्छे दिन गए
मजदूरों-गरीबों के बारे में
सोच लिया होता बातें चंद
तुम भी बंद हम भी बंद
चारों तरफ है बंद ही बंद.

अब तो सारे सुख-साधन छीन गए
देखे थे जो सपने लूट गए
ना जाने ये कैसे दिन आ गए
अपनो से रिश्ते टूट गए
देखो हम कैसे दूर आ गए
दिल से दिल के अरमान आंसूओं में बह गए.

अपनो से कुछ दूर हुए कितने ये मजबूर हुए
मिल न सके लेकिन अलविदा जरूर हुए
सुनकर खबर वो सूख गए
बढ़ते कदम उनके रूक गए
भावनाओं पर लोगों की
कैसा लगा ये प्रतिबंध
तुम भी बंद हम भी बंद
चारों तरफ है बंद ही बंद.

तुम भी बंद हम भी बंद
चारों तरफ है बंद ही बंद
सुना है ये भी हमने
कर दिया अब तो कलम भी बंद.

तुम भी बंद हम भी बंद
चारों तरफ है बंद ही बंद.

दस्तक दे रहीं कुछ अजीब सी आवाजें

एक अजीब सी आवाज
मेरे कानों में घूम रही है.
ये आवाज हमेशा सी नहीं है
ना ही जानी पहचानी है.
कुछ ज्यादा ही रफ्तार से
ये दौड़ रही है.
पता चला, सायरन की है..
हमेशा जैसी नही
डरावने सायरन की है !

दिन रात एक ही आवाज
मेरे कानों में घूम रही है.
इन आवाजों में से
कुछ और अजीब सी आवाजें
दस्तक दे रही हैं..
चीखने की चिल्लाने की..!
इन आवाजों को मैं नहीं जानता..
ना ही मैं इन आवाजों को पहचानता!
फिर भी, मैं क्यों बेचैन चैन हूं?

ये एम्बुलेंस, कहीं जाकर रूक क्यों नहीं रही है?
केवल बंजारों सी क्यों भटक रही है?
लगता है..
कुछ खोज रही है !
कहीं पनाह मांग रही है
कोई इन्हें अपना ले
पर अपनाने वाला कोई नही!
सहारा दे.. और गले से लगा ले
पर गले से लगाने वाला भी कोई नही!
बेजान आंखें, लड़खड़ाती आवाजें
थरथराते हाथ और नजर आती राख!

पहले से ही कई अनजानी चीखें
मेरे चारों ओर दौड़ रही हैं.
बेबस, बेचारा मेरा लोकप्रतिनिधि
वो भी स्तब्ध है.
वो भी इधर/उधर देख रहा है.
समय से आंखें चुरा रहा है.
उसे भी कुछ नहीं सूझ रहा है.

किसके पास वो दो हाथ हैं?
जिसके पास वो दो हाथ हैं
क्यों नहीं हो रहा है ऐसा
जो सिमट ले तुङो अपनों के जैसा!
समय तो मिला था!
फिर क्यों नहीं हो रहा ऐसा?
क्या जीना और क्या मरना
नजारा जैसे का तैसा..?

सभी ओर डरावना सा एक माहौल है.
उस माहौल में भी
एक आशा की किरण है.
वो सूरज की किरण डॉक्टर है
और उनके साथ काम करने वाले साथी.
वो साथी नहीं, वो तो हैं हाथी
उनके हम सा हैं सारथी
फिर भी नहीं उतारते उनकी आरती!
उपदेशों के कशीदे काढ़ते
रखिए निष्ठा और समर्पण..!

बहुत हो गई बेकार की बातें..
भाई! जाओ.. सो जाओ!
झूठे सपनों में खो जाओ..!
मेरी आवाज क्यों नहीं जा रही उन तक?
क्यों उनकी आवाज भी आ रही
दबी दबी सी मुझ तक?

फिर भी वे बेसहारा बेबस लगते हैं
उनके पास के अस्त्र शस्त्र बेजान लगते हैं
निहत्थे हाथ भी बंधे हुए हैं.
ना लगाने के लिए ऑक्सीजन है
न जख्मों को भरने के लिए इंजेक्शन
और न दवाइयां हैं.
इधर फैक्ट्रियां लबालब और मालामाल हैं
तू-तू, मैं-मैं की बारिश चरम सीमा पर
है
फिर भी मैं खामोश हूं..!
वो भी बिना आक्रोश के !
आज नहीं तो कल का इंतजार कर रहा हूँ.
इतिहास ने सच ही कहा है..
बुरी तो निराशा है
सबसे अच्छी आशा है..!

ये कैसा नजारा है?
डॉक्टर को सिसकते मैने पहले कभी
नही देखा.
हालात पे उन्हें निराश मैंने पहले कभी
नहीं देखा.
आज वो उदास क्यों हैं?
डॉक्टर हुए तो क्या..?
वे भी सहमे हुए हैं.
समङिाए वे भी इंसान हैं
चारों ओर डर ही डर है..!

हिमालय से बहती हुई गंगा आज
मैली हो चुकी है.
लाखों ने डूबकर
खुद को पवित्र कर लिया है.
चारों ओर जिंदाबाद के निडर नारे लग रहे हैं.
किसी कोने से बंद कानों में
अजान की आवाजें आ रही हैं.
आरती के आलोक में
लोबान की खुशबू घुली जा रही है.
घुलने दो इसे.. मत रोको..!

होली से भी तेज जले
लाखों की भूमि.
अनजान मुसाफिर को देख
आज वो भी रो ली..
होली बोली..
वेवक्त के मेहमानों का हम कैसे करें
खैरमकदम?
चलो किसी और गांव चलें
वहां भी मनाना है होली..!

मगर हर जगह एक सा आलम
कहीं अपनो के बिछड़ जाने का डर
कहीं अपनों को खोने का गम..!
चारों ओर सन्नाटा..!
उसी में कहीं मुङो, कहीं तुङो
आशाओं के अद्भुत दीप जलाना है
समय को बदलना और बांधना है.

मैं जानता हूं
हर कोई मजबूर है
तो कुछ मजबूत भी हैं.
और जो मजबूत हैं
वही मेरी आशा की किरण हैं
वही मेरे जीने का एहसास भी हैं.

भूल जाओ कल की बातें

भूल जाओ कल की बातें
नए साल में बनाओ नए नाते..

बुङो हुए दिलों के दीप कौन जलाएगा?
मन में उठी नफरत की ज्वाला को कौन बुझाएगा?
चारों तरफ धुआं ही धुआं उठा है
इस माहौल में भला कौन किसे गले लगाएगा?

मेरे कानों में आज ये कैसा गीत गूंज रहा है जिसे सुनकर मेरा मन जल रहा है.
न कोई मेरा मजहब था
न कोई मेरा रंग था
होली, दिवाली, ईद सा
न तेरी थी न मेरी थी.
वो साकी थी.
ये हमारे हिंदुस्तान की सुंदर कहानी थी
हर कोई एक दूजे से प्यार करता था.
हर कोई एक दूसरे पर ऐतबार करता था.
न कोई नफरत थी, न कोई दीवार थी
न आपस में कोई तकरार थी.
न राम अयोध्या में थे, न रहीम काबा में थे, वे सबके दिलो दिमाग में थे.
खेतों खलिहानों में थे
मंदिर, मस्जिद, गिरजाघरों में थे.
कैसे और कहां से आई है अब ये आंधी?
नहीं रहा वो रोकने वाला गांधी..!

तुमने मुझसे वो लम्हा क्यों है छीना?
ये सोचकर मुश्किल हो गया है मेरा जीना.
लौटा दो सबका वो वक्त सुनहरा
खिला-खिला सा रहता था हर किसी का चेहरा.
आज क्यों मायूसी छाई है,
काली घटा क्यों आई है?
हर आंख में शोले बरस रहे हैं
अपने ही अपनों को तरस रहे हैं.
आ मेरा दम घुट रहा है
सब्र का बांध टूट रहा है.
कुर्बानियों का इतिहास मुझसे
आजादी की कीमत पूछ रहा है.

अब मैं तो बिल्कुल निरूत्तर हो गया हूं.
इनसान होकर भी पत्थर हो गया हूं.

चाहे जो हो
अब कोहरा छंटना चाहिए.
आसमां साफ-साफ नजर आना चाहिए.
मौसम खुशनुमा होना चाहिए.
सभी दिलों की धड़कन एक होना चाहिए.
प्यार की सौगात लिए
चांद सितारे जमीं पर आना चाहिए.

भूल जाओ कल की बातें
नए साल में बनाओ नए नाते.
तोड़ लाओ रिश्तों के चांद सितारे
सजाओ घर जैसे भारत को हमारे
आओ हम सब मिलकर तिरंगा फहराएं
हर मोहल्ले, हर गली में भारत मां का जश्न मनाएं.
भूल जाओ कल की बातें
नए साल में बनाओ नए नाते..!

 

मेरे चाहने से भला क्या होता है..

मेरे चाहने से भला क्या होता है
उन्हें भी तो महसूस होना चाहिए
एक मेरे रोने से क्या होता है
उन्हें भी तो खबर होना चाहिए ..

मेरे हालात से वो अनजान सही
गुरूर वक्त की नज़ाकत ही सही
इन्सान को इन्सान की कदर होना चाहिए
वक्त पे हर किसी की नजर होना चाहिए
एक मेरे रोने से क्या होता है
उन्हें भी तो खबर होना चाहिए ..

उनके दिल में इश्क की शमां जल जाए
अश्क मेरे लिए उनके भी निकल जाए
अपने बीमार पर एक नजर होना चाहिए
बस उनके दिल पे मेरा बसर होना चाहिए
एक मेरे रोने से क्या होता है
उन्हें भी तो खबर होना चाहिए ..

इजहार-ए-उल्फत एक दिन करेंगे वो
तन्हाई में आहें भी भरेंगे वो
मेरी दीवानगी का उन पे असर होना चाहिए
आशिकों को अंजाम से बेफिकर होना चाहिए
एक मेरे रोने से क्या होता है
उन्हें भी तो खबर होना चाहिए
मेरे चाहने से भला क्या होता है
उन्हें भी तो खबर होना चाहिए ..

इज़हार-ए-उल्फत एक दिन करेंगे वो
तन्हाई में आहें भी भरेंगे वो
मेरी दीवानगी का उन पे असर होना चाहिए
आशिकों को अंजाम से बेफिकर होना चाहिए
एक मेरे रोने से क्या होता है
उन्हें भी तो खबर होना चाहिए
मेरे चाहने से भला क्या होता है
उन्हें भी तो खबर होना चाहिए ..

 

मोगरा बोले ..

मोगरा बोले
जुल्फ़े खोले
तेरे सुरूर में मन रुनझुन डोले
कंगन खनके
निठुरी पायल झनके
बिंदिया इतराए
आंचल लहराए
सांसों की मस्ती दिल खोले
आंखें छले तेरे होंठ जलें
फिर धड़कते दो दिल मिलें
बनके हवा जो तू आए
तो गुलशन में फूल खिले
पीपल के पेड़ तले ज्योत्सना
अपना प्यार पले
तेरी नई पुरानी हर बातें
याद कर मेरा मन जले
पीपल के पेड़ तले
ज्योत्सना अपना प्यार पले.

रचना..

मोगरा बोले
जुल्फ़े खोले
तेरे सुरूर में मन रुनझुन डोले
कंगन खनके
निठुरी पायल झनके
बिंदिया इतराए
आंचल लहराए
सांसों की मस्ती दिल खोले
आंखें छले तेरे होंठ जलें
फिर धड़कते दो दिल मिलें
बनके हवा जो तू आए
तो गुलशन में फूल खिले
पीपल के पेड़ तले ज्योत्सना
अपना प्यार पले
तेरी नई पुरानी हर बातें
याद कर मेरा मन जले
पीपल के पेड़ तले
ज्योत्सना अपना प्यार पले.

विसरून जा कालच्या व्यथा आणि कथा

विसरून जा कालच्या व्यथा आणि कथा
नवीन वर्षात नवी नाती निर्माण करा आता
विझलेल्या हृदयांचे दिवे कोण चेतवणार ?
मनात उठलेल्या घृणेच्या ज्वाळा कोण विझवणार ?
चारही दिशात धूरच धूर पसरलाय्
या असल्या वातावरणात
कोण कुणाची उरभेट तरी कशी घेणार ?

माझ्या कानाशी आज
हे कुठले गीत घोंघावत आहे
की जे ऐकून माझे मन जळत आहे
ना माझा कुठला धर्म होता
ना माझा कुठला रंग होता
होळी-दिवाळी-ईद हे सारे
ना माझे ना तुझे होते
तर ते सर्वाचे होते
ही आमच्या भारताची
सुंदर कहानी होती
प्रत्येकजण एक दुस:याशी
प्रेमाने वागत होता
प्रत्येकाचा परस्परांवर
मन:पूर्वक विश्वास होता
ना कुठे द्वेष होता
ना कुठे द्वेषाची भींत होती
ना आपसात वाद-विवाद होते
ना राम अयोध्देत
अन् ना रहीम काबात होते
तर ते सर्वाच्या हृदयात
शेत-शिवारात होते
मंदिर – मस्जिद गिरजाघरात होते
कुठून आणि कशी मिळी
या वादळाला संधी
त्याला थांबवायला
नव्हता कुणी गांधी.

तुम्ही माझ्यापासून
तो क्षण का हिरावला ?
हा विचार करताना
मला जगणो कठीन झाले आहे
तो सोनेरी काळ
सर्वाना परत करा
आठवा, तेव्हा कसा दिसायचा
प्रत्येकाचा प्रसन्न चेहरा

आज का आकाशात
नैराश्याचे काळे मेघ अवतरले आहेत
प्रत्येक नेत्रतून पहा
अग्निज्वाळा धगधगताहेत
आपलीच माणसं
आपल्याच माणसांसाठी
कासावीत होताहेत
आता माझा श्वास गुदमरत आहे
सहनतेचा बांध तुटत आहे
शहिदांचा इतिहास मला
स्वातंत्र्याची किंमत पुसत आहे
आता तर मी पूर्णत:
निरुत्तर झालो आहे
मनुष्य असूनसुध्दा
मी पाषाण झालो आहे
जे व्हायचे ते होवो
पण आता धुके इटायला हवीत
आकाश स्वच्छ – निरभ्र व्हायला हवे
ऋतु आनंदी व्हायला हवेत
सर्वाच्या हृदयांचे ठोके
एक व्हायला हवेत
प्रेमाचे उपहार घेऊन
चंद्रतारे धरतीवर उतरायला हवेत
विसरुन जा कालाच्या चर्वित-चर्चा
नव्या वर्षात साधा नवी नाती, विसरुन ईर्षा
ओढून आणा नवनात्यांचे चंद्रतारे
सजवा घराघराला एक भारतासम सारे

चला या, आपण सर्व मिळून
फडकता तिरंगा हाती धरू
प्रत्येक वेटाळात-गल्ली बोळात
भारतमातेचा जयजयकार करू
विसरा गडे हो,
कालच्या गोष्टिमाता
नव्या वर्षात नवी नाती
घडवू आपण आता.